यमनोत्री की खड़ी चढाई में पस्त
सन्नाटे में सुबह कल रात बिरला हाउस में पहले टेंट और फिर बाकायदा कमरे का मिलना वरदान साबित हुआ। खाली कमरे में गद्दे और रजाई पहले से मौजूद थी। जिसे बिछाकर सो गया था। दोनों बड़े बैग बड़ी सी खिड़की के पास की मेज़ के ऊपर ही रख दिए थे। आंख खुल चुकी है। बेहतर यही रहेगा कि फटाफट तैयार हो कर निकल लिया जाए यमनोत्री मार्ग पर। दरवाज़ा खोल कर बाहर निकला ही एक सज्जन बाहर इंतजार करते मिले। दरवाज़े के पास ही रखा मोटर जैसी दिखने वाली वस्तु को चालू किया और चले भी गए। मैं हाँथ में टूथब्रश लिए खड़ा ये सब देखता रहा। दांतों को घिसते हुए बाहर निकला तो यहाँ पाया की एक माली खाली पड़े छोटे से मैदान की घास छीलने में जुटा हुआ है। अकारण ही हाँथ जोड़ कर नमस्ते करने लगा। मैंने भी सिर हिलाकर उनके नमस्ते का जवाब दिया। बाहर नल्के से कल रात वाले भैया पानी भरते नजर आए। मैं तैयार होता इससे पहले देखा कि पुलिस की वर्दी में कुछ महिला हवलदार टीप टाप …