विश्वप्रसिद्ध नाको झील
भगदड़ वाली सुबह रात तो मानो चुटकी बजाते बीत गई। पर सोते समय दिमाग में ये बैठा लिया था अगर समय से नहीं उठा तो बस छूटने का खतरा ज्यादा होगा। समय रहते आंख खुल गई है पर उठने का मन नहीं हो रहा है। पर घुमक्कड़ी का ये उसूल है। या तो आराम कर लो या तो घुमक्कड़ी। अभी मेरे पास दो विकल्प हैं या तो सोता रह जाऊं या फिर या फिर वाहन में सवार होकर अगली मंज़िल पर निकल जाऊं। ऐसा ना पहली मर्तबा हुआ है और ना ही आखिरी। ऐसे बहुत से मौके आयेंगे जब नींद का बलिदान देना होगा। बस छूटने के डर से दोबारा नींद कहाँ आनी थी। इतनी ठंड में रजाई फेकना अपने आप में बहुत बहादुरी का काम किया मैंने। बस को निकालने में अभी पैंतालीस मिनट हैं। वैसे भी हिमाचल प्रदेश में रोडवेज बसें अपने निर्धारित समय पर प्रस्थान करने के लिए मशहूर हैं। पर मुझे आधा घंटा लगा तैयार होने में। ना जाने क्या सूझी की समय रहते नहा भी लिया। उधर अजय बाथरूम का …