भारत भ्रमण की तैयारी
झोल ये हो गया है कि अजय का झोला अमेज़न से अभी तक नहीं आया। कस्टमर केयर पर एक एजेंट के मुताबिक आज सुबह छह सात आठ बजे तक आ जाना चाहिए।
लेकिन जुमले सुनते सुनते बज गए दस। इस मुकाम पर एजेंट और थ्रोक विक्रेता दोनों ने ही हांथ खड़े कर दिए हैं। आगे क्या होगा किसी को नहीं पता। बैग आयेगा या नहीं! भारत भ्रमण समय से शुरू होगा या नहीं।
मैंने अजय को साफ शब्दों में चेता दिया है। तुम्हारा बैग आए चाहें ना आए चंडीगढ़ जाने वाली ट्रेन का रिजर्वेशन कैंसल नहीं होगा। भले ही मुझे अकेले ही क्यों ना निकलना पड़े।
मुझे भारत भ्रमण पर खतरा मंडराता साफ़ नज़र आ रहा है़े। चंडीगढ़ फिर अमृतसर होते हुए हिमाचल की वादियों में गुम हो जाऊँगा।
छोटे से कमरे में जगह जगह बैग और सूटकेस पैक कर के रख दिए हैं। इन्हें एक एक करके ठिकाने लगाना है। मैं एक बैग कापी किताब से भरा एकदम तैयार रखा है।
चूंकि इसमें कॉपी किताब है इसलिए इसे नोएडा में ही सेक्टर 55 में रखने निकल गया। बैग रख कर वापस आ भी गया तब भी ट्रैवल बैग डिलीवर नहीं हुआ, कहानी वहीं की वहीं अटकी है।
अस्त व्यस्त कमरे में सामान ऐसे बिखरा पडा है जैसे सब्ज़ी मंडी। एक बैग इस कोने में तो एक सूटकेस दूसरे कोने में। कमरे में झऊआ भर झोले, अटैची रखे हुए हैं जिसे समय रहते दोस्तो के घर पहुंचाना है।
लेकिन ये तभी संभव है जब अजय का बैग डिलीवर हो जाए वरना शायद और देर हो जाए। आज रात तक हॉस्टल खाली कर के चंडीगढ़ रवाना हो जाना है।
जैसा तनावपूर्ण माहौल बन रहा है उसको ध्यान में रखते हुए मुझे तो अजय के साथ चलने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं।
बैग पहुंचने से टला खतरा
बैग ना डिलीवर होने के बाद ये विचार ये बना कि एक जन साहिबाबाद जा कर गोडाउन से बैग उठाएगा और एक जना ये झोला झंडा ले के गाजियाबाद में कॉलेज के मित्र के घर रखने जाएगा।
फोन पर लगातार एजेंट के संपर्क में मैं बना हुए हूँ। उधर एजेंट को जब पता चला बैग आज ही आना आवश्यक है तो उसने स्पष्ट शब्दों में ये बोल दिया है कि बैग अब नहीं आ पाएगा।
आशा निराशा के बीच ये तय हो गया कि अब तो योजनानुसार काम करना है। मैं कमरे के बाहर तैयार खड़ा कुछ ही देर में निकलने ही वाला हूँ।
हांथ में ताला लिए कमरे को बंद करने ही जा रहा हूँ कि तभी अचानक एक अज्ञात कॉल आता है अजय के फोन पर। हिच्किचते हुए अजय ने फोन उठाया तो उधर से यही आवाज़ आई “आपका बैग आ गया है आप बाहर आ जाइए लेने”।
बाहर निकल कर देखा तो एक लारी वाला हांथ में बैग लिए बैठा है। बैग देख थोड़ी आस बंधी और समय भी बचा साहिबाबाद जाने से। ना उमीदी में आशा की किरण जगी।
बैग तो ले लिया। इससे ये तय हो गया कि अजय मेरे साथ निकलेगा। यदि बैग ना आता तो उसे घर बैठना पड़ता। एक तरफ तो मुझे ये सोच सोच कर हसी भी आ रही है दूसरी तरफ कमरे में बिखरा सामान हिल्ले लगाना है।
बैग आ जाने से सहूलियत हो गई है। जरूरी सामान अपने अपने ट्रैवलिंग बैग में भर कर एक कोने में रख दिए। बाकी के बैग पैक करके कमरे के बाहर ले आया, तबतक मोबाइल एप से ऑटो बुक करा लिया।
सामान का आवंटन
कुछ ही मिनटों में ऑटो वाला आ धमका। एक एक कर सारे बैग ऑटो में ठूस दिए और दिन के ठीक दो बजे निकल पड़ा गाजियाबाद। बद्दर गर्मी में लूं के थपेड़े पसीने से लथपथ चेहरे पर इस गर्मी में ठंड का एहसास करा रहे हैं।
दिन का समय होने के कारण जब ज्यादा ट्रैफिक नहीं रहता, आधे घंटे के भीतर अनंत के घर पहुंच गया। अपने दो मंजिला किराए के मकान से अनंत बाहर निकला।
एक एक कर ऑटी से बैग निकाले और सामान पहली मंज़िल पर पहुंचता गया। ऑटो वाले को पैसे दे कर रफा दफा किया। सारा सामान कर यहीं सुरक्षित रखवा दिया।
कुछ देर गप्पे मारी और वापस नोएडा के लिए टेंपो से 62 मेट्रो आ पहुंचा। हॉस्टल से निकलने से पहले अजय ने अपना और मेरा लैपटॉप ले ही लिया था ताकि उसे दिल्ली में रखवा दिया जाए।
इसलिए अजय सीधा दिल्ली निकल गया अपने एक मित्र के घर लेपटॉप रखवाने। अलग अलग जगह सामान इसलिए रखवाना भी ठीक है ताकि किसी एक पर ज्यादा लोड ना पड़े।

कमरे में ले जाने वाला सामान अलग रखते लेखक
कुछ सामान की खरीदारी करनी बाकी राह गई है। जो अजय दिल्ली से करते हुए आयेगा। भारत भ्रमण की बाकी की सारी तैयारी पिछले एक साल की हैे।
मैं घर आ कर कमरा खाली करने लगा, आल्तू फाल्तू सामान कमरे से बाहर किया। सारी तैयारी करते करते शाम हो गई। अजय को आने में इतनी देरी हुई कि ये ट्रेन छूटने का कारण भी बन सकती है।
ट्रेन एप पर देखा तो उसमें जो ट्रेन साढ़े नौ बजे आनी थी वही अब दस बजे आयेगी। फिर भी चैन नहीं है क्योंकि पहले से ही बहुत देरी हो चुकी है और देर करना मतलब खिलवाड़ करना।
कभी कभी ट्रेन रिकवर करके समय पर पहुंच जाती है।
भाग दौड़
हड़बड़ी में खाना चालू किया, एक खाया, एक पराठा रोल करके भागते हुए कमरे में पहुंचा। बैग उठा कमरा खाली किया अब इससे ज्यादा देर मतलब ट्रेन का छूटना तय।
हॉस्टल के मित्रगणों से अलविदा लिया और निकल पड़ा नए सफर पर। दौड़ते भागते नए नए बने पास के मेट्रो स्टेशन पहुंचा जो की कुछ पैदल दूरी पर ही है।
सूनसान स्टेशन पर मेरे और ऑटोवालों, रिक्शेवाले के सिवाय कोई भी नजर नहीं आ रहा है। लिफ्ट से पहली मंजिला पहुंचे।
बिना बैग की जांच कराए और खुद की भी जांच कराए ट्रेन में नहीं बैठ सकते। बैग की चैकिंग के दौरान अजय की बैग से चाकू बरामद हुआ।
सारे सिक्योरिटी हाई अलर्ट पर आ गए और हमें ऐसे तिरछी नजर से देखने लगे जैसे क्राइम पेट्रोल का कोई अपराधी।
पहले पहले तो सिक्योरिटी ने अप्पती जताई लेकिन बाद में उन्हें इसका अपनी सुरक्षा के मद्देनजर को देखते हुए कारण बताया तो बिना किसी रोक टोक के जाने दिया।
ट्रेन छूटने से बची
बैग के चीर हरण के बाद उसे समेटा और ऑटोमैटिक चलने वाली सीढ़ी से स्टेशन पर आ खड़ा हुआ। दूर से माचिस की तिली के समान टिमटिमाती मेट्रो आई जिससे निकल पड़ा दिल्ली रेलवे स्टेशन की ओर।
मैं भी लेट हूँ और मोबाइल ऐप में देखा तो ट्रेन और भी लेट है। ट्रेन के समय के पहले मैं पहुंच जाऊ ऐसी उम्मीद तो है मुझे।
मैं दिल्ली स्टेशन पहुंचा भी ट्रेन के निर्धारित समय से आधा घंटा देरी से। ट्रेन भी मेरी तरह लेट लपेट। इतने बड़े स्टेशन पर प्लेटफार्म नंबर दस पर पहुंचना जैसे आफत वाला काम हो गया।
सिक्योरिटी चेक के बाद प्लेटफार्म पर आया बैग पटका पानी पिया, लेकिन इतना भारी बैग नोएडा से दिल्ली लाने में हालत थोड़ी खस्ता तो ज़रूर हुई।
सुबह से अब जा कर कुछ राहत की सांस मिली। कुछ ही देर में ट्रेन आ जाएगी और मैं भारत भ्रमण के पहले शहर चंडीगढ़ को देखने निकल पडूंगा।